नई दिल्ली वाहन विनिर्माण उद्द्धोग में आवश्यक रूप से उपयोग में आने वाले दुर्लभ पृथ्वी चुम्बक जिसे रेयर अर्थ मैग्नेट्स के रूप में जाना जाता है के लिए चीन पर निर्भरता को खत्म करने के लिए भारत के निजी उधम क्षेत्र ने बहुत बड़ी पहल की है । हैदराबाद की कंपनी मिडवेस्ट एडवान्सड मटीरियल्स रेयर अर्थ मेग्नेट्स का निर्माण शुरू करने की पूरी तैयारी में है । अगर सब कूछ सही रहा तो दिसम्बर के पहले सप्ताह से ही उत्पादन शुरू होने की पूरी संभावना है । अगर ऐसा होता है तो यह देश के निजी क्षेत्र के लिए पहली बार इन दुर्लभ खनिजो का उत्पादन होगा जिस से वाहन निर्माण के क्षेत्र में मजबूती आयगी ।
एमएएम कंपनी के एक उच्च अधिकारी के अनुसार हैदराबाद में सालाना 500 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स का उत्पादन किया जायेगा। इस प्रोजेक्ट में 1000 हजार करोड़ रूपये के निवेश के साथ अगले तीन साल में उत्पादन की क्षमता को पांच हजार टन तक ले जाने की योजना है । एमएएम की सहयोगी कम्पनी मिडवेस्ट लिमिटेड ने उन खदानों की पहचान कर ली है । जहा रेयर अर्थ मैग्नेट्स के उत्पदान में उपयोग में आने वाले कच्चे माल का प्रचुर मात्रा में भंडार उपलब्ध है ।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चाइना पर भारी टैरिफ लगाये थे । इसके बाद चाइना ने सात भारी और मध्यम दुर्लभ खनिजो के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इनमे सैमेरियम,गैडोलीनियम,टेरबीयम,दिस्प्रोसियम,ल्युटेटियम,स्कैनडियम यीट्र्रीटीयम शामिल है । इनका इस्तेमाल, रक्षा उर्जा और वाहन निर्माण क्षेत्र में किया जाता है । चीनी कंपनियों को अब इसके निर्यात के लिए रक्षा लाइसेंस लेना अनिवार्य है। हालाँकि भारत ने आश्वासन दिया था की अर्थ मैग्नेट्स का उपयोग रक्षा विनिर्माण में नहीं होगा और वाहन विनिर्माताओ द्वारा घरेलु उद्धेश्यो की आवश्यक्ताओ की पूर्ति हेतु ही किया जायेगा । फिर भी चीन आपूर्ति बहाल करने हेतु तैयार नहीं है । चीन के इस फैसले से दुनिया भर की ऑटो इंडस्ट्री में उत्पादन का संकट गहरा गया है । जापान की प्रमुख वाहन निर्माता कंपनी सुजुकी ने कारो के उत्पादन पर अनिश्चित कालीन रोक लगा दी है । तो भारत में भी कारो के निर्माण रोकने को रोकने की नोबत आने वाली है ।
रेयर अर्थ मैग्नेट्स के इस्तेमाल इन अति बेशकीमती दुर्लभ धातुओं का इस्तेमाल सबसे अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों, मोबाइल और प्रदूषण रहित उर्जा वाले क्षेत्रों में होता है । दुनिया भर की रेयर मैग्नेट्स की कुल खपत का 90 फीसदी उत्पादन अकेले चीन के द्वारा किया जाता है । अति दुर्लभ प्रथ्वी तत्वों के खजाने के हिसाब से 69 लाख टन के क्षमता के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है । लेकिन इनके व्यवसायिक उत्पादन में सबसे पीछे है ।भारत में सिर्फ सरकारी क्षेत्र की कंपनी इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड दुर्लभ तत्वों का खनन कार्य करती है । और इसका उत्पादन परमाणु उर्जा और रक्षा इकाइयों की आवश्यकताओ की पूर्ति तक ही सिमित है ।
भारत सरकार की तैयारी भारत सरकार रेयर अर्थ मैग्नेट्स हेतु चीन पर निर्भरता बहुत ही जल्द खत्म कर देना चाहती है । इसलिए सूत्रों के अनुसार भारत सरकार देश में इसका उत्पादन बढाने के लिए इसके निर्माण से संबधित भारतीय निजी क्षेत्र की कम्पनियों को प्रोत्साहन देने की भूमिका बना रही है एंव सरकार निजी कम्पनियों को दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के खनन और उनके प्रसंसकरण के काम में लगाने के लिए हर तरह से मदद को तैयार है । इसके लिए इन के काम में आने वाली मशीनों के आयात में लगने वाले सभी प्रकार के आयात शुल्क में छुट दे रही है एंव उत्पादन पर प्रोत्साहन भी देने को आतुर है ।